भीमा-कोरेगांव: सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय का निर्णय किया निरस्त

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लखनऊ। अर्बन नक्सली ग्रुप की न्याय प्रक्रिया को उलझाने की कवायद को जोरदार झटका लगा है। सर्वोच्च न्यायालय ने गौतम नवलखा के साथ ही अधीनस्थ न्यायालय को भी नहीं बख्शा। भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने तथाकथित मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा को दिल्ली से मुंबई ट्रांसफर करने पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को रिकॉर्ड पेश करने को लेकर दिए गए दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश को निरस्त कर दिया है।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि नवलखा की जमानत याचिका पर सुनवाई करना दिल्ली हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की पीठ ने कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय को नवलखा की जमानत याचिका पर विचार करने का अधिकार नहीं है। पीठ के अनुसार यह प्रकरण मुंबई की अदालतों के अधिकार क्षेत्र का है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायालय में सुनवाई के दौरान कहा था, 'सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जब नवलखा ने आत्मसमर्पण किया था, उस समय दिल्ली में लॉकडाउन था। एनआईए ने बाद में मुंबई की विशेष अदालत में आवेदन कर दिल्ली की तिहाड़ जेल में न्यायिक हिरासत में बंद गौतम नवलखा को पेश करने के लिए आवश्यक वॉरंट जारी करने का अनुरोध किया था।' मेहता ने यह भी कहा कि इस वारंट के आधार पर नवलखा को मुंबई की अदालत में पेश किया गया और दिल्ली हाईकोर्ट को इसकी जानकारी भी दी गई थी दिल्ली में लॉकडाउन खत्म होने के बाद नवलखा को मुंबई ले जाया गया। जबकि, नवलखा की ओर से प्रस्तुत वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा है कि हाईकोर्ट ने क्या किया था? उसने न तो कोई जमानत दी और न ही किसी तरह की राहत दी। हाईकोर्ट ने तो सिर्फ संबंधित अधिकारी को हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा था। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट को इस याचिका पर विचार ही नहीं करना चाहिए था।

पीठ ने सिब्बल से कहा, इस तरह के मामले में कोई हाईकोर्ट हस्तक्षेप कैसे कर सकता है? आप हमारे पास आ सकते थे या फिर मुंबई में एनआईए की संबंधित अदालत में जा सकते थे। उल्लेख्य है कि दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी ने कहा था कि एनआईए ने गौतम नवलखा की जमानत अर्जी लंबित रहने के दौरान उन्हें दिल्ली की अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर ले जाने के लिए बेवजह जल्दबाजी में काम किया था। न्यायालय का कहना है कि नवलखा की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई से एक दिन पहले उन्हें मुंबई ले जाया गया था। एनआईए ने दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश का पालन करने की बजाय इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया था। स्मरण रहे दो जून को न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा के नेतृत्व में न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी । सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने इस प्रकरण की सुनवाई करते हुए न केवल दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ एनआईए को दोबारा अपील करने की मंजूरी दी अपितु एनआईए के विरुद्ध न्यायमूर्ति भंभानी द्वारा की गई टिप्पणी को भी रिकॉर्ड से हटा दिया। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के 27 मई के फैसले पर रोक लगी दी थी। इससे पहले अपने आदेश में गौतम नवलखा को दिल्ली की तिहाड़ जेल से मुंबई ले जाने में दिखाई गई जल्दबाजी के लिए एनआईए को आड़े हाथ लिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने 19 जून को नाराजगी जताते हुए हाईकोर्ट द्वारा नवलखा की जमानत याचिका पर विचार करने पर सवाल उठाए थे, जबकि इस तरह की राहत के लिए उनकी याचिका पहले ही खारिज की जा चुकी थी और उन्हें निश्चित तारीख के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया गया था। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 16 मार्च को नवलखा की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए उन्हें तीन सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया था। इस आदेश का पालन करते हुए नवलखा ने 14 अप्रैल को आत्मसमर्पण कर दिया था और इसके बाद से वह तिहाड़ जेल में बंद थे। उन्हें 26 मई को ट्रेन से दिल्ली से मुंबई ले जाया गया था। वह फिलहाल मुंबई की तलोजा जेल में हैं। जानकारी हो कि गौतम नवलखा को भीमा-कोरेगांव में एक जनवरी, 2018 को हुई हिंसा के सिलसिले में पुणे पुलिस ने अगस्त, 2018 को गिरफ्तार किया था। पुणे पुलिस का आरोप था कि उसने 31 दिसंबर 2017 को पुणे में आयोजित एलगार परिषद में भड़काऊ भाषण दिया था, जिसकी वजह से अगले दिन भीमा-कोरेगांव में हिंसा भड़की थी। यह भी उल्लेख्य है कि 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने गौतम नवलखा और आनंद तेल्तुम्बड़े को भीमा कोरेगांव हिंसा मामले के सिलसिले में एक सप्ताह के भीतर जेल अधिकारियों के समक्ष समर्पण करने का आदेश दिया। साथ ही न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इसके बाद समर्पण के लिए समय नहीं बढ़ाया जाएगा क्योंकि महाराष्ट्र में अदालतें काम कर रही हैं।आनंद तेल्तुम्बड़े ने कोरोना वायरस महामारी का हवाला देते हुए उच्चतम न्यायालय से बीते 8 अप्रैल को अनुरोध किया कि उन्हें भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में जेल अधिकारियों के समक्ष समर्पण करने के लिए और समय दिया जाए। इन कार्यकर्ताओं ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान जेल जाने का मतलब 'मौत की सजा' जैसा ही है। इनकी दलील को कोर्ट ने गंभीरता ने नहीं लिया था। अदालत ने 16 मार्च को इन कार्यकर्ताओं की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा था कि यह नहीं कहा जा सकता कि उनके खिलाफ पहली नजर में कोई मामला नहीं बना है। हालांकि न्यायालय ने इन कार्यकर्ताओं को जेल अधिकारियों के समक्ष समर्पण करने के लिए तीन सप्ताह का वक्त दिया था। इससे पहले 16 मार्च को सुनवाई के दौरान न्यायालय ने अग्रिम जमानत की अस्वीकृति के संबंध में यूएपीए के तहत प्रावधानों का हवाला देते हुए उनकी याचिका को खारिज कर दिया था।31 दिसंबर, 2017 को पुणे में एलगार परिषद सम्मेलन हुआ, उसके अगले दिन भीमा कोरेगाँव में हिंसा हुई और 28 अगस्त, 2018 को पुलिस ने वामपंथी कार्यकर्ता के पी। वरवर राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वरनो गोन्जाल्विस को गिरफ्घ्तार कर लिया।

स्मरण रहे प्रति वर्ष जब 1 जनवरी को दलित समुदाय के लोग भीमा कोरेगाँव में जमा होते हैं, वे वहाँ बनाये गए श्विजय स्तम्भश् के सामने अपना सम्मान प्रकट करते हैं। यह विजय स्तम्भ ईस्ट इंडिया कंपनी ने उस युद्ध में शामिल होने वाले लोगों की याद में बनाया था। इस स्तम्भ पर 1818 के युद्ध में शामिल होने वाले महार योद्धाओं के नाम अंकित हैं। ये वे योद्धा हैं जिन्हें पेशवाओं के खघ्लिाफ जीत मिली थी। कुछ लोग इस लड़ाई को महाराष्ट्र में दलित और मराठा समाज के टकराव की तरह प्रचारित करते हैं और इसकी वजह से इन दोनों समाज में कड़वाहट भी पैदा होती रहती है। 2018 को चूँकि इस युद्ध की 200वीं वर्षगाँठ थी लिहाजा बड़े पैमाने पर लोग जुटे और टकराव भी हुआ। आरोप लगाया गया है कि इस सम्मेलन के बाद भीमा-कोरेगाँव में हिंसा भड़की। 24 जुलाई 2019 को पुणे पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में बॉम्बे हाईकोर्ट के सामने यह दावा किया कि गौतम नवलखा हिज्बुल मुजाहिदीन और दूसरे कई कश्मीरी अलगाववादियों के संपर्क में थे। पुलिस के अनुसार, नवलखा कश्मीर के अलगाववादियों और उन सभी लोगों से जुड़े थे, जिनसे हिज्बुल के रिश्ते थे। राष्ट्रीय सुरक्षा, सम्प्रभुता पर सवालिया निशान बने अर्बन नक्सली ग्रुप की न्याय प्रक्रिया से बचने की तमाम कोशिशें सफल होती नहीं दिख रही हैं।

(मानवेन्द्र नाथ पंकज-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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